कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न

सन् 2013 में कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न अधिनियम को पारित किया गया था।जिन संस्थाओं में दस से अधिक लोग काम करते हैं, उन पर यह अधिनियम लागू होता है l

यह कानून क्या करता है?

  • यह क़ानून कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न को अवैध करार देता हैl
  • यह क़ानूनयौनउत्पीड़नके विभिन्न प्रकारों को चिह्नित करता है, और यह बताता है कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की स्थिति में शिकायत किस प्रकार की जा सकती है।
  • यह क़ानून हर उस महिला के लिए बना है जिसका किसी भी कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न हुआ होl
  • इस क़ानून में यह ज़रूरी नहीं है कि जिस कार्यस्थल पर महिला का उत्पीड़न हुआ है,वह वहां नौकरी करती होl
  • कार्यस्थल कोई भी कार्यालय/दफ्तर हो सकता है,चाहे वह निजी संस्थान हो या सरकारीl

यौन उत्पीड़न क्या है?

इस अधिनियम के तहत निम्नलिखित व्यवहार या कृत्य ‘यौनउत्पीड़न’की श्रेणी में आता है:

कृत्य उदाहरण
इच्छा के खिलाफ छूना या छूने की कोशिश करना यदि एक तैराकी कोच छात्रा को तैराकी सिखाने के लिए स्पर्श करता है तो वह यौनउत्पीड़ननहीं कहलाएगा lपर यदि वह पूल के बाहर, क्लास ख़त्म होने के बाद छात्रा को छूता है और वह असहज महसूस करती है, तो यह यौनउत्पीड़नहै l
शारीरिक रिश्ता/यौन सम्बन्ध बनाने की मांग करना या उसकी उम्मीद करना यदि विभाग का प्रमुख, किसी जूनियर कोप्रमोशन का प्रलोभन दे कर शारीरिक रिश्ता बनाने को कहता है,तो यह यौनउत्पीड़नहै l
यौन स्वभाव की (अश्लील) बातें करना यदि एक वरिष्ठ संपादक एक युवा प्रशिक्षु /जूनियर पत्रकार को यह कहता है कि वह एक सफल पत्रकार बन सकती है क्योंकि वह शारीरिक रूप से आकर्षक है, तो यह यौनउत्पीड़नहैl
अश्लील तसवीरें, फिल्में या अन्य सामग्री दिखाना यदि आपका सहकर्मी आपकी इच्छा के खिलाफ आपको अश्लील वीडियो भेजता है, तो यह यौनउत्पीड़नहै l
कोई अन्यकर्मजो यौन प्रकृति के हों, जो बातचीत द्वारा , लिख कर या छू कर किये गए हों

शिकायत कौन कर सकता है?

जिस महिला के साथ कार्यस्थल पर यौनउत्पीड़नहुआ है, वह शिकायत कर सकती हैl

शिकायत किसको की जानी चाहिए ?

  • अगर आपके संगठन/ संस्थान में आंतरिक शिकायत समिति हैतो उसमें हीशिकायत करनी चाहिए। ऐसे सभी संगठन या संस्थान जिनमें १० से अधिक कर्मचारी हैं,आंतरिक शिकायत समिति गठित करने के लिए बाध्य हैंl
  • अगर संगठन ने आंतरिक शिकायत समिति नहीं गठित की है तो पीड़ित को स्थानीय शिकायत समिति में शिकायत दर्ज करानी होगीl दुर्भाग्य से कई राज्य सरकारों ने इन समितियों को पूरी तरह से स्थापित नहीं किया है और किससे संपर्क किया जाए,यह जानकारी ज्यादातर मामलों में सार्वजनिक नहीं हुई है।

शिकयत कब तक की जानी चाहिए? क्या शिकायत करने की कोई समय सीमा निर्धारित है ?

शिकायत करते समय घटना को घटे तीन महीने से ज्यादा समय नहीं बीता हो, और यदि एक से अधिक घटनाएं हुई है तो आखरी घटना की तारीख से तीन महीने तक का समय पीड़ित के पास है l

क्या यह समय सीमा बढाई जा सकती है ?

हाँ, यदि आंतरिक शिकायत समिति को यह लगता है की इससे पहले पीड़ित शिकायत करने में असमर्थ थी तो यह सीमा बढाई जा सकती है, पर इसकी अवधि और तीन महीनों से ज्यादा नहीं बढाई जा सकती l

शिकायत कैसे की जानी चाहिए ?

शिकायत लिखित रूप में की जानी चाहिए। यदि किसी कारणवश पीड़ित लिखित रूप में शिकायत नहीं कर पाती है तो समिति के सदस्यों की ज़िम्मेदारी है कि वे लिखित शिकायत देने में पीड़ित की मदद करेंl

उदाहरण के तौर पर, अगर वह महिला पढ़ी लिखी नहीं हैऔर उसके पास लिखित में शिकायत लिखवाने का कोई ज़रिया नहीं है तो वह समिति को इसकी जानकारी दे सकती है, और समिति की ज़िम्मेदारी है कि वह यह सुनिश्चित करे की पीड़ित की शिकायत बारीक़ी से दर्ज़ की जाए l

क्या पीड़ित की ओर से कोई और शिकायत कर सकता है ?

  • यदि पीड़ित शारीरिक रूप से शिकायत करने में असमर्थ है (उदाहरण के लिए,यदि वह बेहोश है),तो उसके रिश्तेदार या मित्र,उसके सह-कार्यकर्ता,ऐसा कोई भी व्यक्ति जो घटना के बारे में जानता है और जिसने पीड़ित की सहमति ली है,अथवाराष्ट्रीय या राज्य स्तर के महिला आयोग के अधिकारी शिकायत कर सकते हैं l
  • यदि पीड़ित शिकायत दर्ज करने की मानसिक स्थिति में नहीं है,तो उसके रिश्तेदार या मित्र,उसके विशेष शिक्षक,उसके मनोचिकित्सक/मनोवैज्ञानिक,उसके संरक्षक या ऐसा कोई भी व्यक्ति जो उसकी देखभाल कर रहे हैं,शिकायत कर सकते हैं। साथ ही कोई भी व्यक्ति जिसे इस घटना के बारे में पता है,उपरोक्त व्यक्तियों के साथ मिल कर संयुक्त शिकायत कर सकता है l
  • यदि पीड़ित की मृत्यु हो चुकी है, तो कोई भी व्यक्ति जिसे इस घटना के बारे में पता हो, पीड़ित के कानूनी उत्तराधिकारी की सहमति से शिकायत कर सकता है l

शिकायत दर्ज करने के बाद क्या होता है?

यदि वह महिला चाहती है तो मामले को ‘कंसिलिएशन’/समाधान’ की प्रक्रिया से भी सुलझाया जा सकता है। इस प्रक्रिया में दोनों पक्ष समझौते पर आने की कोशिश करते हैं, परन्तु ऐसे किसी भी समझौते में पैसे के भुगतान द्वारा समझौता नहीं किया जा सकता है l

यदि महिला समाधान नहीं चाहती है तो जांच की प्रक्रिया शुरू होगी, जिसे आंतरिक शिकायत समिति को 90 दिन में पूरा करना होगा l यह जांच संस्था/ कंपनी द्वारा तय की गई प्रकिया पर की जा सकती है, यदि संस्था/कंपनी की कोई तय प्रकिया नहीं है तो सामान्य कानून लागू होगा l समिति पीड़ित, आरोपी और गवाहों से पूछ ताछ कर सकती है और मुद्दे से जुड़े दस्तावेज़ भी माँग सकती है lसमिति के सामने वकीलों को पेश होने की अनुमति नहीं है l

जाँच के ख़त्म होने पर यदि समिति आरोपी को यौन उत्पीडन का दोषी पाती है तो समितिनियोक्ता (अथवा कम्पनी या संस्था, आरोपी जिसका कर्मचारी है) को आरोपी के ख़िलाफ़ कार्यवाही करने के लिए सुझाव देगी। नियोक्ता अपने नियमों के अनुसार कार्यवाही कर सकते हैं, नियमों के अभाव में नीचे दिए गए कदम उठाए जा सकते हैं :

  • लिखित माफी
  • चेतावनी
  • पदोन्नति/प्रमोशन या वेतन वृद्धि रोकना
  • परामर्श या सामुदायिक सेवा की व्यवस्था करना
  • नौकरी से निकाल देना

झूठी शिकायतों से यह कानून कैसे निपटता है ?

यदि आंतरिक समिति को पता चलता है कि किसी महिला ने जान-बूझ कर झूठी शिकायत की है,तो उस पर कार्यवाही की जा सकती है।ऐसी कार्यवाही के तहत महिला को चेतावनी दी जा सकती है, महिला से लिखित माफ़ी माँगी जा सकती है या फिर महिला की पदोन्नति या वेतन वृद्धि रोकी जा सकती है, या महिला को नौकरी से भी निकाला जा सकता है l

हालांकि,सिर्फ इसलिए कि पर्याप्त प्रमाण नहीं है,शिकायत को गलत नहीं ठहराया जा सकता , इसके लिए कुछ ठोस सबूत होना चाहिए (जैसे कि महिला ने किसी मित्र को भेजे इ-मेल में यह स्वीकार किया हो कि शिकायत झूठी है )l

नियोक्ता और उन के कर्त्तव्य

इस क़ानून के मुताबिक संस्था या कम्पनी के निम्न श्रेणी के प्रबंधक या अधिकारी को नियोक्ता माना जाता है:

  • सरकारी कार्यालय/दफ्तर में- विभाग का प्रमुख नियोक्ता होता है, कभी कभी सरकार किसी और व्यक्ति को भी नियोक्ता का दर्ज़ा दे सकती है।
  • निजी दफ्तर में -नियोक्ता कोई ऐसा है व्यक्ति जिस पर कार्यालय के प्रबंधन और देखरेख की ज़िम्मेदारी है , इसमें नीतियां बनाने वाले बोर्ड और समिति भी शामिल हैं l
  • किसी अन्य कार्यालय में – एक व्यक्ति जो अपने अनुबंध/कॉन्ट्रैक्ट के अनुसार एक नियोक्ता है को इस क़ानून में भी नियोक्ता माना जा सकता है।
  • घर में – जिस व्यक्ति या घर ने किसी घरेलू कामगार को काम पर रखा है वह नियोक्ता है (काम की प्रकृति या कामगारों की संख्या से कोई फर्क नहीं पड़ता)l

नियोक्ता के कर्तव्य

  • नियोक्ता को अपने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के मामलों से निपटने के लिए अपनीसंस्था /कम्पनीमें ‘आंतरिकशिकायतसमिति’कागठनकरनाचाहिए। ऐसी समिति की अध्यक्षता संस्था या कम्पनी की किसी वरिष्ठ महिला कर्मचारी द्वारा की जानी चाहिए। इसके अलावा इस समिति से सम्बन्धित जानकारी कार्यस्थल पर किसी ऐसी जगह लगायी/चस्पाँ की, जानी चाहिए जहाँ कर्मचारी उसे आसानी से देख सकें।
  • नियोक्ताओं को मुख्य रूप से सुनिश्चित करना है कि कार्यस्थल सभी महिलाओं के लिए सुरक्षित है। महिला कर्मचारियों को कार्यस्थल पर आने-जाने वालों (जो कर्मचारी नहीं हैं) की उपस्थिति में असुरक्षित महसूस नहीं करना चाहिए। इसके अलावा,नियोक्ता को अपनी ‘यौन उत्पीड़न सम्बन्धी नीति’ और जिस आदेश के तहत आंतरिक शिकायत समिति की स्थापना हुई है, ऐसे आदेश की प्रति, ऐसे स्थान पर लगा/ चस्पाँ कर देनी चाहिए जिससे सभी कर्मचारियों को इसके बारे में पता चल सकेl
  • नियोक्ता को यौन उत्पीड़न के मुद्दों के बारे में कर्मचारियों को शिक्षित करने के लिए नियमित कार्यशालाओं का आयोजन करना चाहिए l
  • उन्हें अपने सेवा नियमों में यौन उत्पीड़न को भी शामिल करना चाहिए और कार्यस्थल में इससे निपटने के लिए एक व्यापक नीति तैयार करनी चाहिए।

इस कानून के बारे में अधिक जानकारी के लिए, अंग्रेजी में यह सरल स्पष्टीकरण पढ़ें:

यह लेख न्याय द्वारा लिखा गया है. न्याय भारत का पहला निःशुल्क ऑनलाइन संसाधन राज्य और केन्द्रीय क़ानून के लिए. समझिये सरल भाषा मैं I