पुलिस केस – पीड़ित के दृष्टिकोण से

1. पुलिस अनुसंधान प्रारम्भ कब कर सकती है?

एक संज्ञेय अपराध घटित होने की सूचना मिलते ही पुलिस द्वारा अनुसंधान शुरू किया जा सकता है यदि उन्हें अपराध होने का पता हो तो वह FIR के आभाव मैं भी जाँच शुरू कर सकती है I यधपि अनुसंधान प्रारम्भ करने से पूर्व पुलिस को एक रिपोर्ट, FIR सहित, मजिस्ट्रेट को भेजनी होगी ताकि वह इस मामले मैं अवगत रहे I

2. क्या पुलिस को हर अपराध मैं अनुसंधान करना होता है?

नहीं I यदि पुलिस को यह प्रतीत हो की अनुसुंधन जारी रखने के पयार्प्त कारण नहीं हैं, वह इसे रोक सकते हैं I तथापि, अनुसंधान करने से पहले ही यदि मामले को बन्द किया जाता है, तो पुलिस का तर्क सहित मजिस्ट्रेट एवं शिकायत करता को इस बारे मैं रिपोर्ट करना अनिवार्य है I इस समय आप इस समापित रिपोर्ट के विरुद्ध मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन दे सकते हैं I

3. अनुसंधान मैं क्या-क्या- कदम होते हैं?

एक अनुसुंधन मैं पुलिस विभिन कदम ले सकती है:

अपराध के घटना स्थल का मुआयना, लोगों की तलाश एवम वस्तुओं की जब्ती लोगों से अन्वेषण ( सवाल जवाब) शव परिक्षण का आयोजन I

4. क्या पुलिस मेरे घर की तलाशी ले सकती है?

यदि अनुसुंधन में आवश्यक हो तो पुलिस किसी भी जगह की तलाशी ले सकती है I आम तौर पर उन्हें एक अधिपत्र (वारंट) की आवश्यकता होती है, जोकि न्यायालय द्वारा तलाशी लेने की आज्ञा है I बिना वारंट भी तलाशी ली जा सकती है, यदि;

उन्हें विश्वास है की आपके पास अनुसंधान मैं अपेक्षित कुछ ऐसा है जिसका तुरंत मिलना अत्यन्त महत्वपूर्ण है I

मजिस्ट्रेट ने तलाशी हेतु उचित आगेश पारित किया है एवं वह तालाशी के लिए स्वयं साथ आये I

5. क्या पुलिस मुझे पुलिस स्टेशन जाने के लिए विवश कर सकती है?

पुलिस आपको पुलिस स्टेशन आने का एवं सवालों का जवाब देने का आदेश दे सकती है I यथापि, अगर आप एक महिला हैं, अथवा १५ वर्ष से कम अथवा ६५ वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्ति हैं, अथवा मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग हैं I तब पुलिस आप को कहीं भी आने का आदेश नहीं दे सकती, उन्हें आप से स्वयं के घर मैं ही पूछताछ करनी होगी I

याद रखें, हमेशा पुलिस के समक्ष उपस्थित होने का प्रमाण उत्पन्न करने का प्रयास करें I अगर आप को पुलिस द्वारा नोटिस प्राप्त हुआ है, तो उसे नष्ट न करें I इसी तरह, पुलिस के समक्ष उपस्थित होते समय एक पत्र उन्हें प्रस्तुत करने का प्रयास करें एवं प्रतिलिपि मैं इस बाबत अभिस्विक्र्ती प्राप्त करें I यह उनके द्वारा उल्त्मोड़ अथवा सच को तोड़ने-मरोरने के परयास पर रोक लगाएगा I

6. क्या पुलिस मुझे सवालों का जवाब देने एवं हस्ताक्षर करने के लिए विवश कर सकती है?

पुलिस आपसे अपराध अथवा उसकी सुचना बाबत पूछताछ कर सकती है I सच्चाई से जवाब देना आपका दायित्व है I तथापि “क्या आप अपराध के दोषी हैं?” जैसे सवाल यदि किये जायें तो आप चुप रहने का अधिकार रखते हैंI

आप पुलिस को जो कुछ भी बताते हैं, वह उसे लिखित मैं उतार सकते हैं अथवा उसकी रिकॉर्डिंग कर सकते हैं I पुलिस आप को कथन देने के लिए न धमका सकती है न छल का प्रयोग कर सकती है I

7. क्या यह जानकारी लेने का अधिकार मुझे प्राप्त है की मामले मैं क्या चल रहा है?

दुर्भाग्यवश, विधि मैं ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो आप को मामले के संदर्भ में सूचित रखने पर पुलिस को विवश करे I पर एक बार अनुसुंधन पूर्ण होने के पश्चात पुलिस को FIR पेशकर्ता को यह बताना होता है कि मामले मैं क्या कारवाही की गई I ( उधारंग्त्या, यदि आरोपत्र पेश किया गया है ?) कई पुलिस वेबसाइट FIR की वर्तमान स्थिथि पर नज़र रखने की सम्भावना प्रदान करती है I यह ‘ कंप्लेंट ट्रैकिंग सिस्टम’ (CCTNS) से संभव है I हालांकि हमेशा नवीनतम स्थिथि उपलब्ध नहीं होती है, पर फिर भी आप अपनी स्थानिक अथवा राज्य पुलिस की वेबसाइट इस बाबत जानकारी हेतु देख सकते हैं I

8. अनुसंधान पूर्ण होने के पश्चात क्या होता है?

अनुसंधान पूर्ण कर लेने के बाद पुलिस द्वारा मजिस्ट्रेट को एक ‘अंतिम रिपोर्ट’ भेजी जाती है, ऐसे मैं दो परिस्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं:

पुलिस के पास अभियुक्त के विरुद्ध पर्याप्त साक्ष्य है ; ऐसी अवस्था मैं पुलिस मजिस्ट्रेट के समक्ष ‘अंतिम रिपोर्ट’ पेश करेगी जिसे ‘ आरोप पत्र’ अथवा ‘चालान’ कहते हैं I इस रिपोर्ट मैं अपराध संबंधी सम्पूर्ण साक्ष्य का उल्लेख होता है I अभियुक्त यदि पुलिस अभिरक्षा मैं है, तोह उसे मजिस्ट्रेट के समक्ष न्यायालय द्वारा मामले के विचारण हेतु भेजा जाएगा

पुलिस ने ‘समापित रिपोर्ट’ पेश की है: इसका अर्थ है की पुलिस के मन मैं न्यायालय को मामला विचरण हेतु नहीं लेना चाहिए I यहाँ या तो पुलिस को लगता है की कोई अपराध घटित हुआ ही नहीं है, अथवा अनुसंधान मैं आरोपी के विरुद्ध प्रयाप्त सामग्री प्राप्त नहीं हो पाई है I यदि आरोपी अभिरक्षा मैं ही, तो उसे एक ‘बांड’ निष्पादित करने के प्रश्चात रिहा कर दिया जाएगा I इस स्तिथि मैं प्रथम सूचक को एक नोटिस भेजा जाएगा I आप पुलिस की इस कदम का ‘ प्रोटेस्ट पेटिशन’ द्वारा विरोध कर सकते हैं I

विधि का यह सुस्थाप्ती आश्वासन है की पुलिस आरोप पत्र प्रस्तुत करते समय पीड़ित अथवा किसी भी गवाह को न्यायालय मैं उपस्थित होने के लिए विवश नहीं कर सकती. तथापि, पुलिस आप को पीड़ित अथवा गवाह के रूप मैं मजिस्ट्रेट के समक्ष एक बांड पर हस्ताक्षर करने का आदेश दे सकती है I यह बांड न्यायालय मैं निष्पद्नकर्ता की साक्ष्य हेतु उपस्थिति सुनिश्चित करता है I