न्यायिक विचारण (ट्रायल) पीड़ित के दृष्टिकोण से

1. विचारण कब प्रारंभ होता है?

न्यायिक विचारण वह चरण है जिसके अंतर्गत न्यायालय द्वारा गवाहों को सुना जाता है एवं उत्पन्न साक्ष्य एवं प्रलेखीय साक्ष्य को रिकॉर्ड किया जाता है I विचारण से पूर्व के संबंधी बहुत कार्य पूर्ण करने होते हैं I आम तौर पर , ट्रायल प्रारंभ करने से पूर्व नम्नलिखित मैं से प्रत्येक परिस्थिथि का होने आवश्यक है;-

मजिस्ट्रेट को अपराध का प्रसंज्ञान लेना जरुरी है I प्रसंज्ञान से यह तात्पर्य है की अपनी न्यायिक बुधि का उपयोग कर मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत होता है की एक अपराध घटित हुआ है I यह करने के लिए मजिस्ट्रेट के समक्ष ‘आरोप पत्र’ (चालान) या ‘ परिवाद’ होगा, अथवा उसे इस अपराधिक घटना का निजी ज्ञान होगा I एक मजिस्ट्रेट अधिकारी अपराधों का प्रसंज्ञान ले सकती है परंतु विधि मैं इससे संबंधित कुछ उपवाद भी उल्लेखित हैंI

मजिस्ट्रेट अभियुक्त को न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने के लिए बुलावा देती हैं I इसे औपचारिक रूप से इस्सुइंग प्रोसेस कहते हैं I यदि मामला एक निजी शिकायत से संस्थापित है, तो शिकायत को प्रोसेस इशू करने के लिए एक लधु ‘ न्यायालय शुल्क’ जमा करने के साथ अतिरिक्त कॉपी भी प्रदान करनी होगी जिसे अभियुक्त को भेजा जाएगा I

‘ पुलिस केस ‘ मैं , पुलिस के द्वारा मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश हर दस्तावेज अब अभियुक्त को उपलब्ध कराना होगा

तत्पश्चात मजिस्ट्रेट यह निर्णय लेगी की किस न्यायलय को मामले की सुनवाई करनी है I मामले संबंधी संपूर्ण सामग्री भेज वह इसे विचारण न्यायालय को प्रतिबद्ध ‘(commit)’ करती है I किस न्यायालय को मामला commit होगा सामान्यत; यह अपराध की गंभीरता पर निर्भर है I सबसे अधिक गंभीर अपराध, जिनमे ७ वर्ष अथवा अधिक कारावास के दण्ड का प्रावधान है, का विचारण ‘सेशन न्यायालय’ द्वारा किया जाता है I

मामला उचित न्यायालय मैं आने के पशचाट, सबसे पहले आरोपी को बताया जाता है की उसके विरुद्ध क्या आरोप है I इसे ‘फ्रामिंग ऑफ़ चार्जेज’ करना कहते हैं I यदि न्यायाधीश को यह प्रतीत हो कि ‘ट्रायल’ के लिए पर्याप्त कारण नहीं हैं, वह अभियुक्त को ‘आरोपमुक्त’ (डिस्चार्ज) कर सकती हैंI यह करने से पूर्व उसे दोनो पक्ष के अधिवक्ताओं को सुनवाई का अवसर प्रदान करना चाहिए I

2. ट्रायल के दौरान क्या होता है?

‘आरोप विराचित’ करने के पश्चात न्यायालय को अभियुक्त से सवाल करना होगा की क्या उसे आरोप स्वीकार है I यदि आरोपी को आरोप अस्वीकार हा, तब ही मामला विचारण की दिशा मैं बढेगा I

अभियोगी अधिवक्ताओं को न्यायालय मैं इस बारे में साक्ष्य प्रस्तुत करने होंगे की आरोपी ही अपराधी है I याद रखिये, विधि की यह सुस्थापित उपधारना है की हर व्यक्ति जब तक अपराधी साबित न किया जाए, उसे बेगुनाह माना जाएगाI यहाँ आरोप का संतोषजनक रूप साबित होना अनिवार्य है I यह साबित करने के लिए अभियोजन गवाहों से सवाल-जवाब कर सकता है एवं दस्तावेज एवं अन्य प्रलेखीय साक्ष्य की नयायाधीश के सामने प्रदर्शित कर सकता है I

बचाव पक्ष के अधिवक्ता अभियोजन गवाहों से ‘जिरह/ प्रति परिक्षण ‘ करेंगे, इसका मतलब है की वह गवाहों से सवाल कर सकते हैं जिससे की उन्हें अविश्वसनीय दिखाया जा सके I

अभियोजन समाप्ति के पश्चात गंभीर अपराधों में न्यायालय आरोपी से सीधे ही सवाल करेगा I इस स्टेज पर न्यायायलय यह निर्णय ले सकता है की अभियुक्त के विरुद्ध प्रय्प्त प्रमाण नहीं है I (यदि अभियुक्त अपने विरुद्ध आये साक्ष्य एवम परिस्थितियों का संतोषजनक स्पष्टीकरण देने मैं सफल हो जाता है ) एवम उसे रिहा कर सकता है Iया विचारण जारी रहेगा I

यदि ट्रायल जारी रहे, तो बचाव पक्ष अपने तर्क प्रस्तुत करेगा, गवाह एवं अन्य साक्ष्य सहित I बचाव पक्ष के गवाहों का प्रति परिक्षण करना भी अभियोजन का अधिकार है I

दोनो पक्ष जब अपने-अपने संपूर्ण तर्क प्रस्तुत कर दें, न्यायलय अपना ‘फैसला’ प्रदान करेगा जिससे या तोह यह निश्चित होगा की आरोपी ने अपराध किया है ( दोष्सिधि की घोषणा ) अथवा उसने अपराध करीत नहीं किया है ( बरी करने की घोषणा, दोषमुक्ति) I

अगर न्यायालय अभियुक्त को दोष्सिधि घोषित करता है, तो दण्ड के प्ररन पर उसे कितना दण्ड देना न्यायाचित है, यह निर्णय लेने की एक प्रक्रिया होती है I इसे “ सजा देना’ कहते हैं I

3. विचारण के दौरान पीड़ित के रूप मैं मेरे क्या अधिकार हैं ?

पीड़ित के सिमित अधिकारों को ही विधि मान्यता देती है I अगर सर्कार ने मामला ग्रहण कर लिया है, एवं वह ‘ लोक अभियोजक’ द्वारा विचारित है ,तो आपके सिमित अधिकार हैं :

कम गंभीर अपराधों के लिए, अंतिम सजा घोषित करने से पहले, आप या तो आरोपी से समझौता कर सकते हैं अथवा शिकायत को वापिस ले सकते हैं I अधिकतर अपराध जो २ वर्ष अथवा कम से दंडनीय है के मामलों मैं यदि आप मजिस्ट्रेट को शिकायत करते हैं परंतु आप न्यायालय के समक्ष निरंतर प्रस्तुत नहीं होते हैं, तो केस रोक दिया जाएगा

मानलें की आप अपराध पीड़ित हैं एवं अभियुक्त को न्यायालय से जमानत मिल चुकी है I अपने अधिवक्ता के माध्यम से आप उच्चतर न्यायालय मैं जमानत रद्द करवाने हेतु जा सकते हैं

आप अपना निजी अधिवक्ता नियुक्त कर सकते हैं ; भले ही अभियोजन सर्कार द्वारा संचालित किया जा रहा है I अगर प्रकरण ‘ सेशन न्यायालय ’ के सामने है , तो आप P.P. ( पब्लिक प्रासीक्यूटर) की केवल मात्र सहायता कर सकते हैं I बाकी प्रकार के मामलों मैं आप समान स्तर पर हो सकते हैं यदि आप आवेदन देते हुए यह समझायें की क्यों आप भी प्रकरण मैं तर्क वितर्क प्रस्तुत करना चाहते हैं एवं सब कुछ P.P. पर नहीं छोड़ना चाहते

कुछ परिस्थितियों मैं आपको विधिक सहायता प्राप्त करने का अधिकार भी होता है भले ही आप पीड़ित पक्ष हैं I

यदि आप स्वयं ही निजी शिकायत को आगे बढ़ाते हैं तो आपके अधिवक्ता को ही सम्पूर्ण प्रकरण मैं बहस करनी होगीI

4. मुझे अभियुक्त अथवा उसके वकील द्वारा परेशां किया जा रहा है ? मैं क्या कर सकती हूँ?

दुर्भाग्यवश भारत मैं ऐसा होना अत्यंत सामान्य है व् गवाहों की सुरक्षा हेतु अभी तक कोई विशेष कानून उपलब्ध नहीं है I कुछ उपाय विधि प्रदान करती है, वह निम्न है ;

आप न्यायाधीश से पुच कर ट्रायल बन्ध जगह पर अथवा कोई सुरक्षित स्थान करवा सकते हैं I

आप एक उच्चतर न्यायालय के समीप अपने अधिवक्ता के माध्यम से जा कर ट्रायल को अन्य स्थान अथवा अन्य राज्य स्थानांतरित करवा सकते हैंI

यदि अभियुक्त जमानत पर है तो आप उसकी जमानत रद्द करने का आवेदन दे सकते हैं I

5. विचारण मैं कितना समय लग सकता है ?

कानून यह कहता है की विचारण हर दिन चलना चाहिए परंतु ऐसा शायद ही होता है I न्यायिक विचारण मैं दो से दस वर्ष तक लग सकते हैं Iयह समय अनेक कारणों पर निर्भर होता है I कुछ कानून हैं जिनमें ट्रायल पूर्ण करने की निर्धारित स्म्य्विधि होती है I उदहारण के लिए चैक अनाद्र्ण सम्बन्धी अपराध,परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881प्र्रक्र की अंतर्गत

6. न्यायालय ने आरोपी को निर्दोष पाया है I पीड़ित होते हुए मैं क्या कर सकती हूँ?

आम तौर पर सरकार उच्च न्यायालय मैं अपील करेगी I तथापि, आप भी अपने वकील के माध्यम से उच्च न्यायालय की निकट जा सकती हैं , और निर्णय के खिलाफ अपील करने की अनुमति मांग सकती हैं I यदि उच्च न्यायालय आपको इजाज़त देता है तोह आप अपनी तरफ से तर्क पेश कर सकती हैं की क्यूँ यह मामला सुना जाये I

यह लेख न्याय द्वारा लिखा गया है. न्याय भारत का पहला निःशुल्क ऑनलाइन संसाधन राज्य और केन्द्रीय क़ानून के लिए. समझिये सरल भाषा मैं I