महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष उपाय

1. कौन से अपराध के लिए विशेष प्रावधान हैं?

2013 में निम्नलिखित अपराधों के लिए विशेष प्रावधान सम्मिलित किए गए थेः-

2. अगर मेरे साथ अथवा प्रिय के साथ ऐसा अपराध घटित हो तो पहला कदम क्या है?

आप चिकित्सक सहायता ले सकते हैं। उच्चतम न्यायालय ने यह निर्धारित किया है कि दुष्कर्म उत्तरजीवी की जरूरतें एक मेडिको लीगल आपदा है एवं चिकित्सकीय सहायता पाना उसका अधिकार है।

पीड़ित की ओर से कोई भी एफआईआर करवा सकता है। कानून यह कहता है कि यदि किसी के साथ दुष्कर्म हुआ है, पुलिस द्वारा उसका बयान/कथन सिर्फ उसके घर अथवा उस द्वारा चुनी गई जगह पर ही लिया जायेगा। तो आप पुलिस को आपकी सूचना रिकार्ड करने के लिए अपने स्थान पर आने का निवेदन कर सकते हैं। पुलिस को यह सुनिश्चित करना होगा कि एक महिला पुलिस अफसर ही बयान ले, एवं कोई परिवार का व्यक्ति अथवा कोई सामाजिक कार्यकर्ता वहां उपस्थित रहे। सामान्यतः किसी महिला को बयान देने के लिए पुलिस स्टेशन जाने को विवश नहीं किया जा सकता।

यदि अपराध की उत्तरजीवी मानसिक अथवा शारीरिक रूप से विकलांग है तो पुलिस को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसकी पसंद की जगह पर ही उसके बयान लिये जायें। उन्हें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि आवश्यक विशेष सहायता उपलब्ध है।

यदि पुलिस अफसर उपरोक्त प्रकृति के (दुष्कर्म इत्यादि) अपराध संबंधी सूचना दर्ज करने से मना कर दे, उसे 6 महिने से 2 साल तक का कारावास हो सकता है।

यदि अपराध एक किशोर के विरूद्ध हुआ है जिसको भी इस अपराध की सुचना है उसका दायित्व है कि वह उसे रिपोर्ट करे या तो पुलिस को अथवा ‘विशेष’ किशोर पुलिस ईकाई को । यह सूचना छिपाना भी अपराध है। एक किशोर के साथ दुष्कर्म की घटना का अनुसंधान पुलिस को 3 माह के भीतर करना अनिवार्य है।

जैसे ही पुलिस को ऐसे अपराध की सूचना मिले मजिस्ट्रेट को उत्तरजीवी का कथन अपने समक्ष एवं उपस्थिति में रिकार्ड करना होगा। अतः यह जरूरी है कि मजिस्ट्रेट सारी घटनाओं के विवरण को सुने एवं रिकार्ड करे।

3. मेडिकल परीक्षण के दौरान मेरे क्या अधिकार है?

पहला, कानून कहता है कि यदि आप अम्लीय हमले अथवा दुष्कर्म से पीड़ित हैं तो आपके पास किसी भी सरकारी अथवा निजी अस्पताल से निःशुल्क प्राथमिक चिकित्सा लेने का अधिकार है। यदि कोई चिकित्सालय उपचार/ईलाज करने से मना करे, तो प्रभारी व्यक्ति को भी एक वर्ष तक का कारावास हो सकता है। चिकित्सालय को भी तुरंत पुलिस को अपराध बाबत् सूचना देनी होती है।

दूसरा, उत्तरजीवी का चिकित्सक परीक्षण एफआईआर दर्ज करने के 24 घण्टे के भीतर होना होता है। यह सिर्फ उत्तरजीवी की सहमति से हो सकता है। परीक्षण करने वाले डॉक्टर को एक रिपोर्ट बनानी होती है जिसमें सम्पूर्ण विवरण एवं निष्कर्ष हों एवं शुरू होने व पूर्ण होने का समय का सटीक अंकन होना भी अनिवार्य है। हाल ही में अस्पतालों के लिए नए दिशा निर्देश आये हैं जिसमें उत्तरजीवीकी मेडिकल जांच करने का तरीका बताया गया है।

इस मेडीकल रिपोर्ट को अनुसंधान कर रहे पुलिस आफिसर को भेजना होता है। आफिसर इसके तुरंत पश्चात् रिपोर्ट को मजिस्ट्रेट को भेजेगा।

यदि अपराध एक किशोर के विरूद्ध हुआ होः-

यदि किशोर 12 वर्ष से कम उम्र का है तो उसके माता-पिता अथवा संरक्षक मेडीकल जांच परीक्षण हेतु सहमति दे सकते हैं। 12 से 15 वर्ष की उम्र के किशोरों के मामलों में डाक्टर यह निर्णय ले सकता है कि वह सहमति देने के लिए परिपक्व है या नहीं।

4. ट्रायल में क्या अपेक्षित है?

जहां तक मुमकिन हो दुष्कर्म के मामलों में ट्रायल बंद कमरों में जनता की गैर मौजूदगी में होना होता है ;पद.बंउमतं जतपंसद्ध और जहां तक हो एक महिला जज को प्रधानता दी जाएगी।

उत्तरजीवी को साक्ष्य देने के लिए न्यायालय में प्रस्तुत होना होगा। उसे अपने निजी अधिवक्ता की जरूरत तो नहीं है मगर न्यायालय की आज्ञा से वह पब्लिक प्रोसेक्यूटर की सहायता हेतु एक अधिवक्ता नियुक्त कर सकती है।

विधिक तौर पर न्यायालय को यह मान कर चलना होगा कि उत्तरजीवी ने सहमती प्रदान नहीं की थी। अभियुक्त का अधिवक्ता को ही यदि वह कर पाए यह साबित करना होगा कि उत्तरजीवी ने असल में सहमति दी थी।

दुष्कर्म एवं यौन उत्पीड़न के मामलों में, उत्तरजीवी के पिछले यौन अनुभवों का उपयोग न्यायालय में यह तर्क रखने के लिए कि यदि सहमति थी या नहीं, नहीं किया जा सकता।

ट्रायल के दौरान पीड़ित के अधिकारों बाबत् जानकारी के लिए यहां जायें।

5. ट्रायल पूर्ण होने में कितना समय लग सकता है?

दुष्कर्म संबंधित ट्रायल को 2 महीने के भीतर पूर्ण करना होता है। तथापि वास्तविकता में इस नियम की पालना ज्यादातर नहीं की जाती।

यह लेख न्याय द्वारा लिखा गया है. न्याय भारत का पहला निःशुल्क ऑनलाइन संसाधन राज्य और केन्द्रीय क़ानून के लिए. समझिये सरल भाषा मैं I